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बुधवार, 11 मार्च 2020

Khaleel Jibran ki kahaniya

Khaleel Jibran ki kahaniya

Khaleel Jibran ki kahaniya
Imagesource-Dailycampus.com


                   मैं निर्वासित हूं

मैं इस संसार में एक निर्वासित हूं- एक निर्वासित और अकेला, निस्सहाय। मैं अपने अकेलेपन का सताया हुआ हूं। यह अकेलापन मेरे विचारों को एक जादू के अनजान देश को ले जाता है और मेरे सपनों को एक सुदूर अदृश्ट क्षेत्र की परछाइयों में भर देता है।
                  मैं एक निर्वासित हूं, जो अपने कुटुंबियों और देशवासियों से दूर है। यदि मैं इसमें से किसी से मिलूँ तो मैं अपने मन में कहूंगा-
 "यह कौन है? मैंने इससे कहाँ परिचय प्राप्त किया है? मेरा इसके साथ क्या नाता है और मैं इसके पास क्यों बैठना चाहता हूं?
          मैं स्वयं अपने आस आप से निर्वासित हूं और यदि मैं अपनी जिह्वा को बोलते सुनूं तो मेरे कानों को वह आवाज भी अपरिचित सी मालूम होती है।
              कभी-कभी मैं अपने अंतरंग में झांकता हूं और अपनी गुप्ता आत्माओं को देखता हूं- एक छिपे हुए अंतरंग को, जो हंसता और रोता है साहस करता है और डरता है।
             तब मैं अपने अस्तित्व पर स्वयं आश्चर्य करता हूं और मेरी आत्मा अपने आप पर ही स्नेह करती है। फिर भी मैं एक निर्वासित ही बना रहता हूं,अनजान,कुहर में खोया हुआ और मौन में घिरा हुआ।
           मैं अपने  शरीर से पराया हूं और जब मैं दर्पण के सामने खड़ा होता हूं तो आप देखेंगे कि मेरे चेहरे पर कुछ ऐसी बात होती है,जिसकी मेरी आत्मा ने कल्पना नहीं की थी और आंखों में वह चीज है, जो मेरे मन की गहराइयों में नहीं थी।       
                 जब मैं शहर के गली-मोहल्लों में चलता हूं, तो बच्चे मेरा पीछा करते हैं और चिल्लाते हैं:
             "इस अंधे को देखो।अंधा है। आओ, हम इसे सहारा, लेने के लिए एक लाठी दें।"
         और मैं इनके पास से तेजी से भाग जाता हूं। यदि मुझे कहीं नवयुवतियों का झुंड मिलता है, तो वह मेरा पल्ला पकड़कर यह गीत गाती है-
"यह चट्टान के समान बहरा है। आओ, हम इसके कानों को प्रेम और विषय वासना के गीतों से भर दें।"
 मैं उनके पास से भी भाग जाता हूं।
 और जब मैं बाजार में अधेड़ उम्र के लोगों से मिलता हूं, तो वे मेरे आस-पास इकट्ठे होकर चिल्लाते हैं-
 "यह कब्र के समान गूंगा है। आओ, इसकी टेढ़ी जिह्वा को सीधा करें।"
 और मैं डर के मारे उनके पास से भी भाग जाता हूं।
 और यदि मैं बूढ़े पुरुषों के पास से गुजरता हूं, तो वे अपनी कांपती हुई अंगुलियों से मेरी ओर संकेत करते हुए कहते हैं- "यह पागल है। इस पर भूत प्रेतों का प्रभाव है और इसकी अकल मारी गई है।
                     "मैं इस संसार में निर्वासित हूं। मैं एक परदेसी सा ही हूं, क्योंकि मैंने इस भूमि पर पूर्व से पश्चिम तक यात्रा की है, फिर भी मुझे जन्मभूमि दिखाई नहीं दी और ना कोई मुझे ऐसा मिला, जो मुझे जानता होगा जिसने मेरा नाम सुना होग।
                     हर प्रातकाल जब मैं उठता हूं तो मैं अपने को एक अंधेरी गुफा में कैद-सा पाता हूं,जिसमें मुझे ऊपर से सांप डराते हैं और जिसकी दीवारें और फर्श रेंगने वाले जंतुओं से भरी पड़ी है।
                   जब मैं बाहर के प्रकाश को खोजता हूं तो मेरी परछाई मेरे आगे-आगे दौड़ती है। किस ओर? यह मैं नहीं जानता। उस वस्तु को खोजती है,जिसे मैं भी नहीं समझता और यह उन वस्तुओं को पकड़ती है, जिन की मुझे आवश्यकता ही नहीं।
           जब सायं काल होता है, मैं अपने घर लौट कर कांटों और परों के अपने बिछौने पर लेट जाता हूं तो आनंद और भय-मिश्रित अद्भुत और नए नए विचार मेरे मन को लुभाते हैं और इच्छाएं अपने दु:खों और सुखों सहित मुझे घेर लेती है।
                     जब आधी रात होती है तो बीते हुए युगों की प्रतिक्षायें मुझ पर पड़ती है, भूले-बिसरे परदेशों की आत्माएं मेरे पास आती हैं और मेरी ओर देखती हैं। मैं भी उन्हें ध्यान से देखता हूं और इनसे बातचीत करके पुरानी-पुरानी बातें पूछता हूं।वे अत्यंत कृपा और प्रसन्नता के साथ मेरे प्रश्नों का उत्तर देती हैं।
                  पर जब मैं उन्हें पकड़कर थामने का प्रयत्न करता हूं वह मेरे हाथों में से निकल जाती हैं और इस प्रकार लोप हो जाति हैं मानो वे वायु में चक्कर लगाता हुआ धुआं हो।
                 मैं इस संसार में ।हां मैं निर्वासित ही हूं। यहां कोई भी आदमी मेरी आत्मा की भाषा को नहीं समझता।
     मैं उजड़े स्थानों में जाता हूं और नदियों को घाटियों की गहराइयों में पर्वत-शिखरों पर चढ़ते देखता हूं।
               मेरी आंखों के सामने नंगे वृक्ष लहलहा उठते हैं। उनपर फल लगते हैं। उनके पीले मुरझाए हुए पत्ते गिरने लगते हैं और उनके स्थान पर कलियां आती है और फूल खिलते हैं। यह सब काम एक क्षण में होता है।
         मेरी आंखों के सामने उनकी टहनियां नीचे भूमि पर गिरती है और वे काली नागिन सी बनकर रेंगने लगती हैं।
     मेरे स्वप्न विचित्र और अद्भुत हैं। किसी इंसान ने ऐसे स्वप्न नहीं देखे। मैं पक्षियों को पौ फ़टने पर फड़फड़ाकर चहचहाते और फिर उन्हें बिलबिलाते और चिल्लाते सुनता हूं।
         मैं इन पंछियों को आकाश से नीचे उतरते और लंबे-लंबे खुले हुए केशों वाली नग्न स्त्रियों का रूप धारण किए देखता हूं। वे मुझे प्रेम रूपी काजल भरी आंखों से देखती हैं और मधु से मधुर अधरों से मेरी ओर मुस्कुराती हैं। वे अपने गोरे-गोरे सुगंधित और मेहंदी से लाल हाथों को मेरी ओर बढ़ाती हैं। मेरे देखते देखते वे कुहर के समान लुप्त हो जाती हैं और आकाश में अपने व्यंग्य भरे अट्टाहंसों की प्रतिध्वनि छोड़ जाती हैं।
मैं इस संसार में एक निर्वासित हूँ।
मैं एक कवि हूँ,जो छंदों में उन बातों को संजोता है,जिन्हें जीवन गद्य के रूप में बखेरता है।
  इसलिए मैं एक निर्वासित हूँ और उस समय तक निर्वासित ही रहूंगा,जब तक कि मौत मुझे ऊपर न उठा ले और मेरे देश में न ले जाये।
                             By-Khaleel Jibran

Khaleel Jibran ki kahaniya

लेखक परिचय(सोर्स -विकिपेडिया) - खलील जिब्रान 6 जनवरी 1883 को लेबनान के 'बथरी' नगर में एक संपन्न परिवार में पैदा हुए। 12 वर्ष की आयु में ही माता-पिता के साथ  बेल्जियम,फ्रांस,अमेरिका  आदि देशों में भ्रमण करते हुए 1912 में अमेरिका के न्यूयोर्क  में स्थायी रूप से रहने लगे थे।
बोस्टन  नगर में उन्होंने बालकों के एक पब्लिक स्कूल में ढ़ाई वर्ष तक शिक्षा प्राप्त की। तदुपरांत एक रात्रि के स्कूल में वर्ष भर पढ़ते रहे। फिर वह लेबनान में 'मदरस्तुल हिकमत' नामक एक उच्च कोटि के विद्यालय में शिक्षा प्राप्त करने के लिये चले गए। वहाँ शिक्षा प्राप्त करके वह सीरिया  तथा लेबनान में ऐतिहासिक स्थानों की सैर करते हुए 1902 ई. में लेबनान से वापस चले गए। वह अपने परिवारवालों से बड़ा प्रेम करते थे। इसी कारण 1902 ई. में अपनी बहिन, 1903 ई. में अपने भाई तथा तीन मास उपरांत ही अपनी माँ के र्स्वगवास से उन्हें बड़ा शोक हुआ। इन पारिवारिक दु:खों की अनुभूति तथा अपने मितभाषी स्वभाव के कारण वे अपने विचारों के जगत् में ही विचरण करते रहते थे। चित्रकला  से उन्हें बड़ी रुचि थी। जब बच्चे उन्हें बातों में लगाना चाहते, वे ऐसी अद्भुत बातें छेड़ देते कि वे यह समझने पर विवश हो जाते कि कोई बड़ा ही विचित्र बालक है। 1908 ई. में उनहोंने पेरिस  की फाइन आर्टस् एकेडमी में मूर्तिकला  की शिक्षा प्राप्त की। पेरिस से लौटकर वे न्यूयार्क में निवास करने लगे किंतु वे हर वर्ष अपने परिवारवालों के पास कुछ समय व्यतीत करने के लिये बोस्टन जाया करते थे। वहीं वे शांतिपूर्वक चित्रकला में अपना समय व्यतीत करते।
उनके जीवन की कठिनाइयों की छाप उनकी कृतियों में भी वर्तमान है जिनमें उन्होंने प्राय: अपने प्राकृतिक एवं सामाजिक वातावरण का चित्रण किया है। आधुनिक अरबी साहित्य में उन्हें प्रेम का संदेशवाहक माना जाता है। अंग्रेजी  में अनूदित उनकी कृतियाँ बड़ी प्रसिद्ध हो चुकी है

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